तुलसीदास जी को कैसे हुए भगवान श्री राम और हनुमानजी के दर्शन (Dharmik story in hindi)
तुलसीदास जी : तुलसीदास जी राम जी के भक्त थे इनका जन्म 1554 में श्रावण मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ
जन्म से ही तुलसीदास जी के 32 दांत थे
जब कोई महान कार्य करता है तो उसमें ऊपरी शक्तियों का सहयोग होता है। उसके बगैर कार्य में सफलता में संदेह होता है।
वाल्मीकि जी ने ही दूसरे जन्म में तुलसीदास जी थे (Dharmik story in hindi)
रामचरित मानस लिखने के लिए उन्होंने भक्तिभाव से इसके लिए हनुमानजी को याद किया था।
तुलसीदास जी प्रभु श्री राम भक्त वो हमेशा प्रभु श्री राम का नाम का जाप करते रहते थे।
तुलसीदास जी को प्रेत ने बताया हनुमान जी का पता
तुलसीदासजी चित्रकूट में रहते थे वहां शौच करने जाते थे और शौच करने के बाद जो जल शेष रह जाता था उसे को वृक्ष के ऊपर डाल देते , उस वृक्ष के ऊपर एक प्रेत था।
प्रेतों का आहार अशुद्ध होता है,
उस जल से उस प्रेत की तृप्ति होने लगी। भूत-प्रेत योनि जन्म ली हुई आत्मा अच्छी और बुरी सभी प्रकार की होती है। वो प्रेत अच्छा था। (Dharmik story in hindi )
उस पानी को पिने से प्रेत की भूख प्यास मिट गयी और वो प्रसन्न हो गया और प्रकट होकर तुलसीदास जी से कहा मैं आप पर बहुत खुश हूँ
आप मुझसे कुछ भी वरदान मांगो मैं आपको दूंगा।
तुलसीदासजी ने प्रेत कहा मुझे भगवान श्रीराम के दर्शन करवा दो (Dharmik story in hindi)
प्रेत ने तुलसीदास जी से कहा महाराज यदि मुझ मे इतना सामर्थ्य होता तो इस अधर्म योनि में नहीं भटकता। फिर भी में आपको प्रभु दर्शन के लिए मैं एक उपाय बताता हूँ
प्रेत ने बोला मुझे पाता है कि जहां-जहां रामकथा होती है वहां किसी न किसी रूप में हनुमानजी उस कथा को अवश्य सुनने आते हैं। (Dharmik story in hindi)
मैं एक स्थान जानता हूं,
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हनुमान जी चित्रकूट में कोड़ी के रूप में थे
जहां पर नित्य राम कथा होती है और वहां हनुमानजी कोड़ी के रूप में वहां आते हैं। आप उनके चरण पकड़ लें और उनसे प्रातः प्राथना करो वो बहुत मना करेंगे किंतु आप छोड़ें नहीं। वे आपको भगवान राम के दर्शन करवा सकते हैं।
उसकी बात सुनकर तुलसीदास जी बहुत खुश हुए । वो कथा में गए और उन्होंने सबसे दूर एक कोड़ी को देखा। वह कोड़ी भक्ति से रामकथा सुन रहा था और उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे।
हनुमान जी चित्रकूट धाम में हर रोज राम कथा सुनते है
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तुलसीदास जी उसे देखते रहे। ज्यों ही कथा समाप्त हुई उन्होंने जाकर उस कोड़ी के पैर को पकड़ लिया और बोले मैंने आपको पहचान लिया है और आप मुझे भगवन राम के दर्शन कराएं।
हनुमान जी को तुलसीदास जी ने पहचान लिया
उस कोड़ी (हनुमान जी) ने तुलसीदास जी को कहा भैया तुम मुझे क्यों कष्ट दे रहे हो में आपको दर्शन नहीं करा सकता
लेकिन तुलसीदास जी ने पैर नहीं छोड़े मेरे पर क्यों अपराध चढ़ाते हो मैं तो कोड़ी हूं, मुझे मत छुओ (Dharmik story in hindi)
तुलसीदास जी ने उसके पैर नहीं छोड़े और और रोने लगे। अंत में हारकर कोड़ी के रूप में रामकथा सुन रहे हनुमान जी से भगवान राम के दर्शन करवाने का वचन दिया।
फिर एक दिन चित्रकूट में मंदाकिनी के तट के पास तुलसीदास जी चंदन घिस रहे थे। भगवान राम और लक्ष्मण वहां आये उनसे चंदन मांग-मांग कर लगा रहे थे, उस वक्त हनुमानजी ने तुलसीदास जी को बताने के लिए तोता बनकर यह दोहा बोलै (Dharmik story in hindi)
चित्रकूट के घाट पै भई संतन की भीड़
तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक देत रघुवीर।।
Dharmik Story in Hindi FAQs
तुलसीदास जी ने क्या लिखा था?
तुलसीदास जी ने श्री रामचरित मानस को लिखा उसमे उनको सात महीने में उन्होंने पूरे रामचरित मानस को लिखा था।
क्या तुलसीदास ने भगवान को देखा?
हनुमान जी ने तुलसीदास जी को श्री राम जी से मिलवाया चित्रकूट के घाट पर ।
क्या तुलसीदास जी हनुमान से मिले थे?
तुलसीदास जी भगवान श्री राम जी के कथा सुनाया करते थे। उनकी राम कथा सुनने हनुमानजी भी आते थे
तुलसीदास के कितने दांत थे?
उनके जन्म से ही 32 दांत थे